एक दिन देखकर उदास बहुत
आ गए थे वो मेरे पास बहुत ।
खुद से मैं कुछ दिनों से मिल न सका
लोग रहते हैं आस-पास बहुत ।
अब गिरेबाँ बा-दस्त हो जाओ
कर चुके उनसे इल्तेमास ! बहुत ।
किसने लिंक्खा था शहर का नोहा
लोग पढ़कर हुए उदास बहुत ।
अब कहाँ हम-से पीने वाले रहे
एक टेबल पे इक गिलास बहुत ।
तेरे इक ग़म ने रेज्ञा-रेज़ा किया
वर्ना हम भी थे ग़म-श्रास बहुत ।
कौन छाने लुगात का दरिया
आप का एक इक्तेबास हे बहुत ।
ज़ख़्म की ओढ़नी, लहू की कमीज
तन सलामत रहे लिबास बहुत ।